सोनी टीवी पर प्रसारित हो रहे धारावाहिक विघ्नहर्ता श्रीगणेश में भी बी.आर.चोपड़ा कृत धारावाहिक विष्णुमहापुराण की तरह राजराजेश्वर श्री कार्तवीर्य सहस्रार्जुन का चरित्र हरण किया जा रहा है।अनेक माननीय न्यायालयों ने उक्त विष्णु महापुराण प्रसारण पर लगभग पन्द्रह वर्ष पूर्व रोक लगा दी है जिसका अद्यतन पुनर्प्रसारण नहीं हुआ। साथ ही चोपड़ा के विष्णुमहपुराण के फैलाएं जा रहें छुट विरूद्ध एवं श्री सहस्रार्जुन परम-पावन, पुण्यवान चरित्र पर केन्द्रित " सुदर्शन- चक्रावतार श्री राजराजेश्वर कार्तवीय सहस्रार्जुन" एक वृहद शोध ग्रंथ का लेखन हुआ। जो १५० महाग्रंथ का सार है।लेखक संस्कृत और अंग्रेजी प्रकाण्ड विद्वान्, वर्ष १९७९ में विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन से सहस्रार्जुन की माहिष्मती के सांस्कृतिक अध्ययन पर शोध प्रबंध किया था।
सहस्रार्जुन की आरंभिक पुराणों में प्रसंशा अथवा स्तुति ही की गई है उनके आदर्श चरित्र का देव, ऋषि आदि बखान किया है उदाहरण दिया जाता है। उदरपोषण के लिए घड़ी पुराणकथाओ में गड़बड़ी की है ।जिनको विश्लेषण कर समझने की आवश्यकता है। क्योंकि निन्दात्मक कथा में भिन्नताएं हैं।
वर्ष १९४८ में गुजराती भुल के विद्वान् और उत्तर प्रदेश के महामहिम राज्यपाल स्वर्गीय श्री कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने अपने उपन्यास " परशुराम" सहस्रार्जुन की घोर निन्दा की है। जिसका प्रतिकार श्री चिन्तामणी हटेला प्रयाग ने अपने ग्रंथ "हैहय वंश इतिहास" में सविवरण है।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में मामाजी से केविनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त एक पत्रकार श्री रमेश शर्मा ने अपनी पांच दिवसीय परशुराम कथा वाचन में सहस्रार्जुन जी रावण की प्रदत्त लंका की मदिरा पीने का उल्लेख कर दिया है। जिसके विषयक एक दिन मैं संदर्भ की जानकारी लेने रिंग रोड स्थित उनके शासकीय आवास पहुच गया वे कहते है यह मेरा अनुमान है ।तब मैंने उनके कहा कि ध्यान रहें आप बी.आर.चोपड़ा नहीं है।
अन्त में जागृत समाज बन्धुओं से आग्रह है कि अपने आदि पूर्वज के चरित्र हनन् करने को रोकने के लिए पुरजोर विरोध करें।
जय श्री सहस्रार्जुन